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Sunday 30 June 2013

अस्तित्व

नारी तेरे छबि कलियाँ सी 
बन सुमन चमन आबाद किया । 
भ्रमरों ने मर्कन्द पिया 
फिर हल पे तेरे छोड़ दिया ॥ 

कभी पिरोई गयी तू मोती सी 
उर  लिपट हर श्रृंगार किया । 
जब धूमिल हुई या टूट गयी 
नजरों से तुझको दूर किया ॥ 

कभी बन कर  खिलौना तुम आई 
बन आकर्षण मनुहार किया । 
कभी रूठ गया कभी खेल लिया 
कभी तोड़ किनारे फेक दिया ॥ 

तुम दिखी कभी  कठपुतली सी 
तेरी डोर किसी को सौंप दिया 
मन छह वर किया तुझपर 
अस्तित्व को तेरे नष्ट किया ॥ 

जिंदगी

जिंदगी इतनी आसान  नहीं होती है
कभी फूल कभी काँटों में कड़ी होती है ।
खुली आँख तो खुशियों की बौछार आई
बढे कदम तो खुसबू की बहार आई ।
खिले सुमन तो रंगों को बारात आई
कभी किसलय कभी पतझड़ की कड़ी होती हो
जिंदगी इतनी आसान  नहीं होती है ॥

चल के अंगारों पे दर्द पीना है
सब्र के मरहम से जख्म धोना है
पी  के  आंसू मुस्कुरा के जीना  है
सामने हर वक़्त इम्तहान की घडी होती है
जिंदगी इतनी आसान  नहीं होती है ॥

कच्चे धागे हैं डोर रिश्तों के
रंग कच्चे है नाजुक लड़ियों के
बिखर जाते हैं भावना के झोंको  से
हर लड़ी में सुख दुःख की कड़ी होती है
जिंदगी इतनी आसान  नहीं होती है ॥

दुर्गम पथ में अँधेरे साये  हैं
दीप उम्मीद के जलते आये हैं
कहीं अपने भी गैरों से पराये हैं
रिश्तों में स्वार्थ की दिवार खड़ी  होती है
जिंदगी इतनी आसान  नहीं होती है ॥


नारी तेरे रूप अनेक

नारी शक्ति की पुंज  हो तुम
फिर क्यूँ अबला कहलाई हो ।
                    पानी दूध की सरिता हो
                   यह मौन स्वीकृति पाई हो ॥

ममता प्रेम की मूरत हो तुम
विश्वास क्षमा की धागी हो ।
              हर पूण्य तुम्ही से पुष्पित है
              तुम ही बगिया की माली हो ॥

अँधेरे में चादनी सी हो
तुम मंद पवन सी शीतल हो ।
             सूरज की रश्मि जैसी तुम
            रौशन करती हर गुलशन हो ॥

हर घाव पे मरहम जैसी हो
धुप में बदली की छाव हो तूम ।
                    सुने मरुस्थल में हरदम
                   बन के आई बरसात हो तुम ॥

तुम बोझ वहन  करती इतना
अपमान के घूंट भी पीती हो ।
                तेरी उपमा से धरती भी
               आज धरती माँ कहलाई है ॥

जब-२ तेरे धैर्य को तोडा  गया
चंडी रूप बनाई  हो तुम ।
               कभी चंदमुखी कभी सूर्यमुखी
                कभी ज्वालामुखी बन आई हो तुम ॥

तुम भूल न जाना शक्ति को
शिव भी बिन तेरे अधुरा  है ।
                  सीता राधा के आगे बिना
                 राम कृष्णा का नाम न पूरा है ॥  

नववर्ष

नए साल की नयी कामना नयी उमंगें लायी
हो सबको बधाई - हो सबको बधाई । ।

जीवन के दुर्गम पथ पर हम सदा से चलते आये
लेकिन बाधाओं  से हम  नहीं कभी घबराये ।
क्यूंकि जब जब निशा ढली है
उषा ने घुघंट उठाई ....
हो सबको बधाई -हो सबको बधाई ॥

कल का जब सूरज निकले तो
खिल जाये जग सारा
हिर्दय कमल प्रस्फुटित हो सबके
मिटे मन का अधियारा
खुशियों से झोली को भर के
प्यार की चुनर ओढाई हो
सबको बधाई हो सबको बधाई हो ॥

आओ मिलकर नाचे गाये
झूमे खुशियाँ मनाये
ये गागर उत्साह का हरदम
यूँ ही छलकता  जाये
क्यूंकि आज सभी  की बदौलत ये महफ़िल रंग लाई
हो सबको बधाई ..हो सबको बधाई । ।  

Wednesday 7 March 2012

होली!!!

दो अक्षर का नाम है होली
रंगों का त्यौहार है होली
टूटी दिल को जोड़े होली
तार-२ झंकृत हो बोले
हर दिल की बोली
अरे मै तेरी  होली की हाय मै तेरी होली ।


जैसे पतझड़ आकर हमको
यह सन्देश दिलाता
नव क्रिस्लय से सज  जायेंगे
तरुवर हमें सिखाता ।
दर्द भरे पल विस्मृत  करके बन जाये हम जोली
अरे मै तेरी  होली की हाय मै तेरी होली ।।

प्रेम रंग की रिमझिम बारिश
तर करदे अंतर्मन को
रंग -रंगीला गहरे से
निकल न पाए जनम-२
ऋतू बसंत लेकर आई है अरमानो की डोली
अरे मै तेरी  होली की हाय मै तेरी होली ।।







यांदे!!!

यांदे तो जीवन के पल-२ की कहानी है
कोई कडवी दर्द भरी तो , कोई मीठी सुहानी है ।।


बचपन की मीठी यादे , मानस में किलोले करती 
सखियों के मधुर मिलन भी मन को उद्धेलित करती ।।

जब मिले तो हर्षित हो गए बिछुड़े तो दर्द तो हुआ है
जीवन के हर लम्हे में सुख दुःख का बोध हुआ ।।

ये पल जो  बीत रहे हैं कल बन जायेंगी यादे ।
हम बिछुड़े भी जाये तो क्या पर जुडी रहेंगी यादें ।।

इस मधुर - मिलन के पल को हम इतना मीठा कर  दे
एक-२ के अन्तस्तल में यादों का सागर भर दे ।।

अनुभव !!!!!!!!!!!!!!!

दुःख न आता तो ,सुख का अनुभव कहाँ होता ।
वियोग के बाद सयोंग का , आनंद कहाँ होता ।।
हानी न होती तो लाभ का मूल्य कहाँ होता ।
अभाव की बाद उपलब्धियों  का हर्ष कहाँ होता ।।
तिरस्कार के बाद सम्मान का अहसास कहाँ होता ।
रात के बाद प्रभात का उल्लास कहाँ होता ।।
राग द्वेष अभिमान के प्रपंच में हम जीते हैं ।
अपने कृत्यों का दोष , हम इश्वर को देते है ।।
जीवन के सुख-दुःख में,उसका आशीर्वाद छुपा होता है ।
अहंकार में दुबे हुए प्राणी को ज्ञान कहाँ होता ।।